कश्ती कुछ इस कदर साहील को पोशीदा कर रही है,
ज़मीं से इश्क़ का हमे इल्म हो गया
जज़ीरे का कोई फ़रेब भी अब है मंज़ूर
कोशिश-ए-मंज़िल में डूबना भी मुनासिब हो गया
ज़मीं से इश्क़ का हमे इल्म हो गया
जज़ीरे का कोई फ़रेब भी अब है मंज़ूर
कोशिश-ए-मंज़िल में डूबना भी मुनासिब हो गया
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