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Showing posts from July, 2015

Baatein...

कहना होता है काफी कुछ तुम्हे इतना की हाँथ भी हिलाती हो और मुँह भी खरीदती तो नहीं तुम बातें? के भाड़े पे लाती हो? कभी औज़ार बना कर झगड़ती हो तो कभी इकरार ना करने के बहाने बनाती हो जब न कहती हो तो आखें तक बोलती हैं तुम्हारी जवाब खोजती हैं आखें जवाब मांगती है कभी न पूछे सवालों का छलकने का आलम हो जाता है कई दफ़ा मिलाता हूँ आँखें तो झुक जाती हैं मानो डरती हैं जवाब से हाँथ फिर चलने लगते हैं, मुह भी किराने से एक और थैली बातें खरीद लायी हो तुम 

Umeed

कश्ती कुछ इस कदर साहील को पोशीदा कर रही है, ज़मीं से इश्क़ का हमे इल्म हो गया जज़ीरे का कोई फ़रेब भी अब है मंज़ूर कोशिश-ए-मंज़िल में डूबना भी मुनासिब हो गया